पर्यटन एवं पुरातात्विक स्थल
राज्य के पुरातात्विक वैभव को जानने के प्रमुख साधन हैं - उत्कीर्ण । लेख , सिक्के , स्थापत्य और शिल्प । पुरातत्त्व ने राज्य के इतिहास की कडियों को जोड़ने का काम किया है । शिलालेखों से न केवल राजनीतिक स्थिति की जानकारी मिलती है , अपितु तत्कालीन लिपि और भाषा पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल
चम्पारण्य
• यह महाप्रभु वल्लभाचार्य का भी जन्म स्थल है । वल्लभ सम्प्रदाय के प्रणेता प्रसिद्ध वल्लभाचार्य का धाम चम्पारण्य राजिम से मात्र 9 किमी की दूरी पर स्थित है । प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा में यहाँ मेला लगता है । आचार्य । वल्लभाचार्य को समर्पित मन्दिर के अतिरिक्त एक पुराना शिव मन्दिर भी है पुरातनता के अतिरिक्त मन्दिर में स्थापित शिवलिंग में क्रमशः शिव - पार्वती , गणेश एक साथ समाहित हैं ।
डोंगरगढ़
• राजनान्दगाँव जिला मुख्यालय से यह 57 किमी की दूरी पर स्थित है । दक्षिण - पूर्व रेलवे के नागपुर - हावड़ा मार्ग पर यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है । इस मन्दिर का निर्माण राजा कामदेव ने करवाया था । रेलवे स्टेशन से लगभग किमी की दूरी पर स्थित ऊँची पहाड़ी के शीर्ष पर बम्लेश्वरी देवी का मन्दिर स्थित है । मराठी संस्कृति की झलक डोंगरगढ़ में देखने को मिलती हैं।
मल्हार
• भारतवर्ष में 52 सिद्ध शक्तिपीठ हैं , जिनमें से 51वाँ शक्तिपीठ मल्हार में स्थापित है । मल्हार में उत्खनन से प्राप्त पातालेश्वर , देउरी मन्दिर में डिण्डेश्वरी मन्दिर दर्शनीय हैं । डिण्डेश्वरी मन्दिर विश्वविख्यात हो चुका है । इस मन्दिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1954 में किया गया । मन्दिर के अन्दर एक ऊँचे संगमरमर के आसन पर स्थापित डिण्डेश्वरी देवी की प्रतिमा मूर्तिकला का सर्वोत्तम नमूना है ।
सिरपुर
• सिरपुर का प्राचीन नाम श्रीपुर था , जिसका अर्थ है - समृद्धि की नगरी । प्राचीन दक्षिण कोशल प्रदेश की राजधानी रही सिरपुर को चीनी यात्री ह्वेनसांग ने देखा था । राज्य सरकार द्वारा पर्यटन के उन्नयन के लिए सिरपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है । बौद्ध ग्रन्थ । अवदान शतक के अनुसार महात्मा बुद्ध यहाँ आए थे ।
राजिम
• राजिम को राज्य का महातीर्थ माना गया हैं । इसे राज्य का प्रयाग नाम से भी जाना जाता है । राज्य की महत्त्वपूर्ण और धार्मिक आस्थाओं से युक्त यह स्थल महानदी के दाहिने तट पर बसा नगर है । राज्य के प्रयाग के नाम से ख्यातिलब्ध राजिम रायपुर लगभग 48 किमी दूर महानदी , पैरी एवं सोण्ढूर नदियों के संगम पर बसा है । यह बस मार्ग और रेल मार्ग द्वारा रायपुर से जुड़ा है ।
पाली
• यह ऐतिहासिक ग्राम कोरबा जिले के अन्तर्गत बिलासपुर - कोरबा सड़क मार्ग पर बिलासपुर से लगभग 43 किमी की दूरी पर स्थित है । यहाँ जलाशय के समीप स्थित प्राचीन शिव मन्दिर दर्शनीय है । यह लगभग एक हजार वर्ष पुराना मन्दिर है , जिसे बाण वंश के राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था । मन्दिर का स्थापत्य एवं उकेरी गई मूर्तियाँ बहुत सुन्दर हैं ।
आरंग
• यह रायपुर से सम्बलपुर जाने वाले राष्ट्रीय मार्ग - 6 पर 37 किमी पूर्व की ओर स्थित है । यहाँ ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्त्व के अनेक मन्दिर स्थित हैं , इसलिए इसे मन्दिरों का नगर कहा जाता है । इसमें जैन तीर्थंकरों की अनेक प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं । नेमिनाथ , अजीतनाथ व श्रेयांश नाथ की 7 फीट ऊँची ग्रेनाइट पत्थर की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं । इस मन्दिर में भाई - बहन एक साथ प्रवेश नहीं करते , ऐसी जनश्रुति है ।
भोरमदेव
• भोरमदेव के मन्दिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है । इस मन्दिर का निर्माण 1089 ई . में फणिनाग वंश के राजा गोपालदेव ने करवाया था । यह कवर्धा से 18 किमी । की दूरी पर स्थित है । कबीरधाम ( कवर्धा ) से बाहर जबलपुर मार्ग पर 2 किमी की दूरी पर बाई ओर तथा 16 किमी अन्दर की ओर भोरमदेव का मन्दिर है । भोरमदेव का मन्दिर छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला में अपना विशेष स्थान रखता है ।
कुनकुरी
• यह रायगढ़ - जशपुर राजमार्ग पर जशपुर से लगभग 45 किमी पहले कुनकुरी स्थान पर स्थित है । यह चर्च देश - विदेश में प्रसिद्ध है । यह कैथोलिक ईसाइयों का पवित्र स्थान है ।
जांजगीर
• यह हैहय वंश के प्रसिद्ध शासक जाज्ज्वल्यदेव द्वारा बसाई गई नगरी है । यहाँ बारहवीं शताब्दी में निर्मित विष्णु । मन्दिर है , जो कल्चुरि विष्णु मन्दिर की तरह एक प्राचीन शिव मन्दिर है ।
शिवरीनारायण
• यह जांजगीर - चाँपा जिले में स्थित है । यहाँ महानदी , शिवनाथ एवं जोंक नदी का त्रिवेणी संगम है । दन्तकथाओं के अनुसार राम ने शबरी के जूठे बेर इसी स्थान पर खाए थे ।
रामगढ़
• बिलासपुर - अम्बिकापुर मार्ग पर क्रमशः । बिलासपुर से 100 किमी तथा अम्बिकापुर से 40 किमी की दूरी पर स्थित रामगढ़ , किंवदन्तियों के अनुसार यह स्थान भी । रामकथा से जुड़ा है । ऐसी मान्यता है कि वनवास के समय राम , लक्ष्मण और सीता । इस स्थान पर कुछ दिन ठहरे थे ।
खैरागढ़
• दक्षिण - पूर्वी रेलवे से हावड़ा - मुम्बई रेलमार्ग पर रायपुर और नागपुर के मार्ग पर राजनान्दगाँव रेलवे स्टेशन है । राजनान्दगाँव ( 37 किमी ) , दुर्ग ( 127 किमी ) तथा रायपुर ( 168 किमी ) से पहुँचा जा सकता । है । यहाँ प्रदेश का एकमात्र कला एवं संगीत विश्वविद्यालय है ।
मैनपाट ।
• यह सरगुजा जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर पूर्वोत्तर में स्थित पठार है । यह ऊँचाई वाले पहाड़ियों पर स्थित है , जिसे तिब्बती शरणार्थियों द्वारा बनाया गया है । इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है । यहाँ ऊन एवं चमड़े का सामान मिलते हैं।
गगरैल
• यह धमतरी से आगे जगदलपुर मार्ग पर बाईं ओर मुख्य मार्ग से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है । रायपुर इसकी दूरी 92 किमी है । महानदी पर 1 , 246 मी लम्बा बाँध पूर्णतः मिट्टी का बना है । यह एक सुन्दर पिकनिक स्थल है । सिंचाई विभाग द्वारा विकसित बगीचा तथा विश्राम गृह उपलब्ध हैं ।
तान्दुला
• यह दुर्ग जिले के मुख्यालय से बालोद होते हुए 64 किमी की दूरी पर स्थित है । तान्दुला नदी पर बनाया हुआ बाँध । सुन्दर प्राकृतिक सौन्दर्य लिए हुए है ।
खरखरा
• यह राजनान्दगाँव जिले में स्थित है । यहां , 129 मी लम्बा बाँध इसी नाम की नदी पर बनाया गया है । यह पिकनिक के लिए सुन्दर स्थान है । यह दुर्ग से 20 किमी की दूरी पर स्थित है ।
खूटाघाट
• यह बिलासपुर से पाली के पश्चात् । अम्बिकापुर मार्ग पर बिलासपुर से 3 . 15 किमी की दूरी पर है । यहाँ पर पानी का वृहत संकलन , आकर्षक सौन्दर्य । तथा सिंचाई विभाग द्वारा निर्मित विश्राम
तीरथगढ़
• यह जगदलपुर से 39 किमी की दूरी पर स्थित छत्तीसगढ़ सबसे ऊँचा जलप्रपात । यहाँ का सुन्दर , मनोरम , प्राकृतिक व शान्त वातावरण , घने वनों से आच्छादित रोमांचक स्थल , शहर के कोलाहल से दूर असीम शान्ति प्रदान करता है ।
चित्रकूट
• यह छत्तीसगढ़ का सबसे चौड़ा एवं सर्वाधिक जलमात्रा वाला जलप्रपात है । जगदलपुर से 38 . 4 किमी की दूरी पर इन्द्रावती नदी पर 29 मी की ऊँचाई से गिरने वाली अपार जलराशि का यह प्रपात दर्शकों का मन मोह लेता है ।
अमृतधार
• सरगुजा जिले के मनेन्द्रगढ़ से 10 किमी की दूरी पर सुन्दर झरना है । यह अमृतधार के नाम से जाना जाता है ।
डीपाडीह
• इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्वीय स्थान के चारों ओर 1 किमी क्षेत्र में अनेकानेक प्राचीनतम मन्दिरों के अवशेष विद्यमान हैं , इनमें सामत सरना , जो वस्तुतः एक शिव मन्दिर है , अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
पंचवटी
• कांकेर से केशकाल आने पर जहाँ । केशकाल घाट समाप्त होता है , वहाँ पश्चिम में पंचवटी नामक मनोरम स्थल का विकास राज्य का वन विभाग कर रहा है । घाटी के दृश्य को देखने के लिए 40 - 50 फीट ऊँचा वाच टावर बनाया गया है । इस स्थान पर एक डाक बंगला भी हैं।
कुटेश्वर
• जगदलपुर के दक्षिण में 25 मील दूर एक । छोटा - सा गाँव , जहाँ गुप्तेश्वर नामक कतिपय गफाएँ हैं । गप्तेश्वर में चूने के पत्थर के कटने से शिव की आकति बन गई है , जिसकी लोग पूजा करते हैं । सम्प्रति यह गाँव बस्तर में है तथा गुफाएँ ओडिशा राज्य में हैं ।
सीतामढ़ी
• सरगुजा जिले की भरतपुर ( प्राचीन चांगभखार ) तहसील में दो नदियों के किनारे घाघरा गाँव है । कहा जाता है और बेगलर के अनुसार , वनवास काल में राम - लक्ष्मण के साथ सीता का यहाँ निवास था । गुफा के अन्दर शंकर की मूर्ति है । . यहीं पर प्राचीन गुफा है , जिसे सीतागढ़ कहा जाता है और बेगलर के अनुसार , वनवास काल में राम - लक्ष्मण के साथ सीता का यहाँ निवास था । गुफा के अन्दर शंकर की मूर्ति है ।